शुक्रवार, 26 मार्च 2021
ग़ज़ल 161 [36 D]: न उतरे ज़िन्दगी भर जो--
1222---1222---1222----1222
न उतरे ज़िन्दगी भर जो, लगा दो रंग होली में,
न उतरी है न उतरेगी, तुम्हारे प्यार की रंगत,
कहीं ’राधा’ छुपी फिरती, कहीं हैं गोपियाँ हँसतीं,
’परे हट जा’-कहें राधा-’कन्हैया छोड़ दे रस्ता’
गुलालों के उड़ें बादल, जहाँ रंगों की बरसातें,
थिरकती है कहीं गोरी, मचलता है किसी का दिल
सजा कर अल्पना देखूँ, तुम्हारी राह मैं ’आनन’
-आनन्द,पाठक-
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