अनुभूतियाँ : क़िस्त 009 ओके
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प्रश्न तुम्हारा वहॊं खड़ा है
मैं ही उत्तर ढूँढ न पाया ।
ग्यान-ध्यान क्या, दर्शन क्या है
मूढ़्मना को समझ न आया ।
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प्रथम मिलन की यादें बाक़ी
आई थी तुम नज़र झुका कर
जाने किसकी नज़र लग गई
भाग गई तुम आँख बचा कर
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वैसे थी तो बात ज़रा सी
तुम ने तिल का ताड़ बनाया
्दोष किसी का, ग़लती किसकी
मेरे सर इलजाम लगाया
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जाना ही था, कह कर जाती
दिल के टुकड़े चुन कर जाती
मेरी भी क्या थी मजबूरी
कुछ तो मेरी सुन कर जाती
-आनन्द.पाठक--
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