बुधवार, 28 जुलाई 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 09

 


अनुभूतियाँ : क़िस्त 09


1

कोई सफ़र नहीं नामुमकिन
उम्मीदों के दीप जलाना
अगर कभी लगता हो तुमको
हिम्मत दिल में  सदा जगाना

2

प्रथम मिलन की यादें बाक़ी

आई थी तुम नज़र झुका कर

जाने किसकी  नज़र लग गई

चली गई तुम बाँह छुड़ा कर

 

3

वैसे थी तो बात ज़रा सी  

तुम ने तिल का ताड़ बनाया

ख़ता किसी की, सज़ा किसी को

मेरे सर इलजाम लगाया

 

4

जाना ही था, कह कर जाती

 दिल के टुकड़े चुन कर जाती

मेरी क्या क्या  मजबूरी थी

 कुछ तो मेरी  सुन कर जाती


-आनन्द.पाठक--


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