ग़ज़ल 182
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जब ’हां’ में ’हाँ’ किया तो रफ़ाकत समझ लिया
हिम्मत से ’ना’ कहा तो बग़ावत समझ लिया
हिम्मत से ’ना’ कहा तो बग़ावत समझ लिया
आतिश ज़बान, सोच में बारूद है भरा
सरकश हुआ तो ख़ुद को क़यामत समझ लिया
हालात ज़िन्दगी का बताने गया उसे
अपने ख़िलाफ़ उसने शिकायत समझ लिया
नेता नया नया है सियासत की बात है
ख़िदमत ग़रीब का भी तिजारत समझ लिया
जादूगरी थी उसकी ,दलाइल भी बाकमाल
उसके फ़रेब को भी ज़हानत समझ लिया
यह बेबसी की इब्तिदा या इन्तिहा कहें ?
’साहब’ के वह सितम को इनायत समझ लिया
’आनन’ अजीब दौर है लोगों को क्या कहें
जाहिल की बात हर्फ़-ए-जमानत समझ लिया
-आनन्द.पाठक-
2 टिप्पणियां:
आतिश ज़बान, सोच में बारूद है भरा
सरकश हुआ तो ख़ुद को क़यामत समझ लिया
आज यही देखने को मिल रहा । बेहतरीन ग़ज़ल
जी ,धन्य्वाद आप का
सादर
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