शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

ग़ज़ल 184 : लख़्त-ए-जिगर का खोना क्या है

 ग़ज़ल 184

21--121--121--122= 16


लख़्त-ए-जिगर1 का खोना क्या है
निशदिन उसका  रोना क्या है


जो  होना है  होगा ही वह
फिर जादू क्या ,टोना क्या  है !


गठरी  इक दिन  लुट जाएगी
दिल से लगा कर सोना क्या  है  !


जो बोओगे तुम काटोगे,  !
तय  कर लेना , बोना क्या है


जो रिश्ते नाकाम हुए  हैं
उन रिश्तों को ढोना क्या  है !


सोन चिरैया देस गई है
दामन और भिगोना क्या है !


एक खिलौना टूटा दिल का
माटी का था रोना क्या  है !

जब ’आनन’ मन साफ़ नहीं तो
जल से तन का धोना क्या है !

 

-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ 
लख़्त-ए-जिगर का = दिल के टुकड़े का


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