सोमवार, 19 जुलाई 2021

ग़ज़ल 185 : पहले थी जैसी अब वो---

  ग़ज़ल 185

ग़ज़ल 185
221--2121---1221---212


 जैसी थी पहले ,वैसी क़राबत नहीं रही
लहज़े में आप की वो शराफ़त नहीं रही

दो-चार गाम साथ में चलना ही था बहुत
अब ज़िन्दगी से वै्सी रफ़ाक़त नहीं रही

’तेशे’ से खुद को मार के ’फ़रहाद ’ मर गया
उलफ़त में आजकल वो शहादत नहीं रही

मौसम बदल गया है तो तुम भी बदल गए
अब बातचीत में वो नज़ाक़त नहीं रही

अब हाय! हेलो! हाथ मिलाना ही रह गया
’दिल से मिलाना दिल को’-रवायत नहीं रही

जब से अना गुरूर से दामन छुड़ा लिया
फिर ज़िन्दगी से कोई शिकायत नहीं रही

दुनिया का दर्द ढालता अपनी ग़ज़ल में तू
’आनन’ तेरी ग़ज़ल में लताफ़त नहीं रही ।

-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ
क़राबत = सामीप्य ,निकटता ,दोस्ती
दो-चार गाम = दो-चार क़दम
लताफ़त = बारीक़ियाँ

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