ग़ज़ल 234[98 D]
2122---1212---22
ज़िंदगी ग़म भी शादमानी भी
इक हक़ीक़त भी है कहानी भी
हादिसे कुछ ज़मीन के आइद
कुछ बलाएँ भी आसमानी भी
प्यार मेरा पढ़ेगी कल दुनिया
एक राजा था एक रानी भी
तेरे अन्दर ही इल्म की ख़ुशबू
तेरे अन्दर ही बदगुमानी भी
अब न आएगा लौट कर बचपन
अब न लौटेगी वो जवानी भी
दर्द अपना बयान करता है
कुछ तो आँखों से कुछ ज़ुबानी भी
लुत्फ़ है ज़िन्दगी अगर ’आनन’
साथ में तल्ख़-ए-ज़िंदगानी भी
-आनन्द.पाठक-
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