ग़ज़ल 247 [12E]
2122---1212---22
आप से दिल लगा के बैठे हैं
खुद को ख़ुद से भुला के बैठे हैं
हाल-ए-दिल हम सुना रहें उनको
और वो मुँह घुमा के बैठे हैं
इश्क़ में कौन जो नहीं फिसला
दाग़-ए-इसयाँ लगा के बैठे हैं
एक दिन वो इधर से गुज़रेंगे
राह पलकें बिछा के बैठे हैं
मेरी चाहत में कुछ कमी तो न थी
वो नज़र से गिरा के बैठे हैं
या इलाही ! उन्हे हुआ क्या है !
ग़ैर के पास जा के बैठे हैं
बात ’आनन’ ने क्या कही ऐसी
आप दिल से लगा के बैठे हैं
-आनन्द.पाठक-
दाह-ए-इसयाँ = गुनाहों के दाग़
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें