ग़ज़ल 249 [14E]
2122---1212---22
आप को राज़-ए-दिल बताना क्या !
उड़ते बादल का है ठिकाना क्या !
बेरुखी आप की अदा ठहरी
मर गया कौन ये भी जाना क्या !
बारहा मैं सुना चुका तुम को
फिर वही हाल-ए-दिल सुनाना क्या !
लोग कहते हैं सब पता तुम को
हसरत-ए-दिल का फिर छुपाना क्या !
जानता हूँ तुम्हें नहीं आना-
रोज़ करना नया बहाना क्या !
रोशनी ही बची न आँखों में
रुख से पर्दे का फिर उठाना क्या !
इश्क़ की आग दिल में लग ही गई
जलने दो , अब इसे बुझाना क्या !
जो भी कहना है खुल के कह ’आनन’
बेसबब बात को घुमाना क्या !
-आनन्द.पाठक-
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