बुधवार, 17 अगस्त 2022

ग़ज़ल 250[15E] : कोई रहता मेरे अन्दर

ग़ज़ल 250 [15E]

मूल बहर

21-121-121-122 = 21-122 // 21-122


कोई रहता  मेरे अन्दर

ढूँढ रहा हूँ किसको बाहर ?


आलिम, तालिब, अल्लामा सब

पढ़ न सके हैं "ढाई आखर"


दर्द सभी के यकसा होते

किसका कमतर? किसका बरतर?


साथ तुम्हारा मिल जाए तो

क्या जन्नत ! क्या आब-ए-कौसर !


ज़ाहिद सच सच आज बताना

क्या है यह हूरों का चक्कर ?


रंज़-ओ-ग़म हो लाख तुम्हारा

कौन सुनेगा साथ बिठा कर 


देख कभी दुनिया तू ’आनन’

नफ़रत की दीवार गिरा कर ।


-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ 

यकसा =एक जैसा

बरतर = बढ़ कर

आब-ए-कौसर =स्वर्ग का पानी


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