गुरुवार, 25 अगस्त 2022

ग़ज़ल 254 [19E] : जो हो रहा है उस पे कभी बोलिए--

 ग़ज़ल 254

221--2121--1221--212


जो हो रहा है उस पे कहा कीजिए हुज़ूर!

नफ़रत की आग की तो दवा कीजिए, हुज़ूर!


ऎसा न हो अवाम सड़क पर उतर पड़े

क्या कह रहा अवाम सुना कीजिए हुज़ूर !


माना कि हम ग़रीब हैं, ग़ैरत तो है बची

जूते की नोक पर न रखा कीजिए, हूज़ूर !


दीवार पे लिखी है इबारत पढ़ा करें-

आवाज़ वक़्त की भी सुना कीजिए, हुज़ूर !


पाला बदल बदल के ये ’कुर्सी’ तो बच गई

गिरवी ज़मीर को न रखा  कीजिए. हुज़ूर !


चेहरा जो आइने में कभी आ गया नज़र

चेहरा है आप का, न डरा कीजिए हुज़ूर !


कुछ इस ग़रीब को भी नज़र मे रखा करें

खुल कर कभी तो आप मिला कीजिए हुजूर


’आनन’ तो सरफिरा है कि सच बोलता है वो

दिल पर न उसकी बात लिया कीजिए, हुज़ूर !


-आनन्द.पाठक-


कोई टिप्पणी नहीं: