सोमवार, 29 अगस्त 2022

ग़ज़ल 256 [21E] : सिर्फ़ आसमान में न उड़ा कीजिए जनाब

 ग़ज़ल 256 [21E]


221---2121--1221---212


सिर्फ़ आसमान में न उड़ा कीजिए, जनाब !

नज़रें ज़मीन पर भी रखा कीजिए जनाब‘


इतनी तिजोरियाँ न भरा कीजिए जनाब‘

कुछ कर्ज़ ’वोट’का भी अदा कीजिए जनाब‘


जो ज़ख़्म भर गया था समय के हिसाब से

उस ज़ख़्म को न फिर से हरा कीजिए जनाब‘


क्यों सब्ज़ बाग़ आप दिखाते हैं रोज़-रोज़

’रोटी’ की बात भी तो ज़रा कीजिए जनाब 


आवाज़ दे रहा हूँ खड़ा हाशिए पे मैं

आवाज़-ए-इन्क़लाब सुना कीजिए जनाब


"दुनिया में कोई और बड़ा है न आप से"

इन बदगुमानियों से बचा कीजिए जनाब


’आनन’ की बात आप को शायद बुरी  लगे

अपनी ही बात से न फिरा कीजिए जनाब‘


-आनन्द.पाठक-




कोई टिप्पणी नहीं: