गीत 02[10]: किसी का प्रणय तन मन हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ ,किसी की कल्पना भी हूँ
मैं किसी का एक वीणा- तार कम्पन
या किसी मनु सा अनागत गहन चिंतन
किसी का अंक-शायी हूँ , किसी की कामना भी हूँ .
किसी का प्रणय तन-मन हूँ....
रात भर बंदी बनाई रही कलिका
देखती है सुबह उड़ना निठुर अलि का
कहीं अभिशप्त हूँ परित्यक्त ,कहीं आराधना भी हूँ .
किसी का प्रणय तन-मन हूँ....
कहीं सिन्दूर हूँ मैं चिर सुहागन का
किसी का एक पावन दीप आँगन का
किसी को मैं अपावन हूँ ,किसी की साधना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...
कल्प से जलता रहा दीपक सरीखा
पी रहा हूँ घन अँधेरा मैं किसी का
किसी को एक पत्थर भर ,किसी की अर्चना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...
मैं किसी को एक अनबूझी पहेली
औ’ प्रतीक्षा मैं कोई बैठी अकेली
किसी को मैं अयाचित हूँ ,किसी की याचना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...
-आनन्द.पाठक-
[ सं 15-06-18]
किसी का प्रणय तन-मन हूँ ,किसी की कल्पना भी हूँ
मैं किसी का एक वीणा- तार कम्पन
या किसी मनु सा अनागत गहन चिंतन
किसी का अंक-शायी हूँ , किसी की कामना भी हूँ .
किसी का प्रणय तन-मन हूँ....
रात भर बंदी बनाई रही कलिका
देखती है सुबह उड़ना निठुर अलि का
कहीं अभिशप्त हूँ परित्यक्त ,कहीं आराधना भी हूँ .
किसी का प्रणय तन-मन हूँ....
कहीं सिन्दूर हूँ मैं चिर सुहागन का
किसी का एक पावन दीप आँगन का
किसी को मैं अपावन हूँ ,किसी की साधना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...
कल्प से जलता रहा दीपक सरीखा
पी रहा हूँ घन अँधेरा मैं किसी का
किसी को एक पत्थर भर ,किसी की अर्चना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...
मैं किसी को एक अनबूझी पहेली
औ’ प्रतीक्षा मैं कोई बैठी अकेली
किसी को मैं अयाचित हूँ ,किसी की याचना भी हूँ
किसी का प्रणय तन-मन हूँ...
-आनन्द.पाठक-
[ सं 15-06-18]
2 टिप्पणियां:
नमस्ते सर जी 💐🙏
नवबर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🎉
सर जी
ये गीत क्या बह्र में है?
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