रविवार, 21 मई 2017

चन्द माहिया : क़िस्त 37

चन्द माहिया : क़िस्त 37

यह दिल ख़ामोश रहा
कह न सका कुछ भी
इसका अफ़सोस रहा

;2:

ये कैसी रवायत है
जाने क्यों तुम को
मुझ से ही शिकायत है

:3:
तुम ने ही बनाया है 
ख़ाक से जब मुझ को 
फिर ऎब क्यूँ आया है ?

:4:
सच है इनकार नहीं
’तूर’ पे आए ,वो
लेकिन दीदार नहीं 

:5;

5
मुझको अनजाने में
लोग पढ़ेंगे कल
तेरे अफ़साने में


-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ
ज़हादत की बातें  = जप-तप की बातें
तूर = उस पहाड़ का नाम जहाँ पर हज़रत
मूसा ने ख़ुदा से बात की थी

[सं 15-06-18]

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