शनिवार, 26 सितंबर 2020

चन्द माहिए : क़िस्त 05


क़िस्त 05

 

:01:

जब बात निकल जाती

लाख जतन कर लो

फिर लौट के कब आती ?

 

:02:

उनकी ये अदा कैसी ?

ख़ुद से छुपते  हैं

देखी न सुनी  ऐसी

 

:03:

ऐसे न चलो हमदम !

लहरा कर जुल्फ़ें

आवारा है मौसम

 

:04:

जीवन का सफ़र मुश्किल

होता है आसां

मिलता जब दिल से दिल

 

:05:

जब क़ैद ज़ुबाँ होती

बेबस आँखें तब

अन्दाज-ए--बयाँ  होती


 सं 21-10-20


3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

आभा खरे ने कहा…

वाह... बहुत सुंदर माहिया

आभा खरे ने कहा…

वाह.. बहुत सुंदर माहिया