शुक्रवार, 8 मार्च 2024

अनुभूतियाँ 132/19 : चुनावी अनुभूतियाँ


चुनावी अनुभूतियाँ  132/19


525

कल बस्ती में धुँआ उठा था

दो मज़हब टकराए होंगे ।

अफ़वाहों की हवा गर्म थी

लोग सड़क पर आए होंगे ।


526

जहाँ चुनावी मौसम आया

हवा साज़िशें करने लगती

झूठे नार वादों पर ही

जनता जय जय करने लगती 


527

जिस दल की औक़ात नही है

ऊँची ऊँची हाँक रहा है ।

अपना दर तो खुला छोड़ कर

दूजे दल में झाँक रहा है ।

528

झूठों की क्या बात करे हम

झूठ बोलने की हद कर दी

दो बोलें या दस बोलें वो

चाहे बोलें सत्तर अस्सी

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