चुनावी अनुभूतियाँ 132/19
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कल बस्ती में धुँआ उठा था
दो मज़हब टकराए होंगे ।
अफ़वाहों की हवा गर्म थी
लोग सड़क पर आए होंगे ।
526
जहाँ चुनावी मौसम आया
हवा साज़िशें करने लगती
झूठे नार वादों पर ही
जनता जय जय करने लगती
527
जिस दल की औक़ात नही है
ऊँची ऊँची हाँक रहा है ।
अपना दर तो खुला छोड़ कर
दूजे दल में झाँक रहा है ।
528
झूठों की क्या बात करे हम
झूठ बोलने की हद कर दी
दो बोलें या दस बोलें वो
चाहे बोलें सत्तर अस्सी
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