सोमवार, 25 मार्च 2024

ग़ज़ल 360[36F] : सोए जो दिन-रात जगाने से क्या होगा

 ग़ज़ल 360[36F] : सोए जो दिन-रात जगाने से क्या होगा

21--121--121---121---121--122  =24

सोए जो दिन रात, जगाने से क्या होगा
बहरों को आवाज़ लगाने से क्या होगा

लोग सुनेंगे हँस कर अपनी राह लगेंगे
महफ़िल महफ़िल दर्द सुनाने से क्या होगा  !

आज नहीं तो कल सच का सूरज निकलेगा
झूठ अनर्गल बात बनाने से क्या होगा  !

जब दामन के दाग़ बज़ाहिर हों दिखते
फिर दुनिया से दाग़ छुपाने से क्या होगा !

जब सत्ता की साज़िश में थे तुम भी शामिल
 फिर तुमसे उम्मीद लगाने से क्या होगा !

ऊँची ऊँची आदर्शों की बातें करना-
सिर्फ़ हवा में गाल बजाने से क्या होगा !

प्रश्न तुम्हारा ’आनन’ नाक़िस बेमानी है
तुम क्या जानो दीप जलाने से क्या होगा !


-आनन्द.पाठक-
सं 29-06-24



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