चुनावी गीत 84[08]
रंग बदलते नेताओं को ,देख देख गिरगिट शरमाया।
फिर चुनाव का मौसम आया ।
पलटी मारी, उधर गया था, पलटी मारी इधर आ गया
’कुर्सी’ ही बस परम सत्य है, जग मिथ्या है' समझ आ गया'
देख गुलाटी कला ’आप’ की, मन ही मन बंदर मुस्काया।
फिर चुनाव का मौसम आया ।
वही तमाशा दल बदली का, दल बदले पर दिल ना बदला
बाँट रहे हैं मुफ़्त ’रेवड़ी’, सोच मगर है गँदला ,गँदला ।
वही घोषणा पत्र पुराना, पढ़ पढ़ जनता को भरमाया ।
फिर चुनाव का मौसम आया ।
आजीवन बस खड़ा रहेगा, अन्तिम छोर खड़ा है ’बुधना’
हर दल वाले बोल गए हैं, - "तेरा भी घर होगा अपना "
जूठे नारों वादों से कब किसका पेट भला भर पाया।
फिर चुनाव का मौसम आया ।
-आनन्द.पाठक-
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