शुक्रवार, 8 मार्च 2024

गीत 84: फिर चुनाव का मौसम आया

 



चुनावी गीत


रंग बदलते नेताओं को ,देख देख गिरगिट शरमाया।

फिर चुनाव का मौसम आया ।


पलटी मारी, उधर गया था, पलटी मारी इधर आ गया

’कुर्सी’ ही बस परम सत्य है, जग मिथ्या है' समझ आ गया'


देख गुलाटी कला ’आप’ की, मन ही मन बंदर मुस्काया।

फिर चुनाव का मौसम आया ।


वही तमाशा दल बदली का, दल बदले पर दिल ना बदला

बाँट रहे हैं मुफ़्त ’रेवड़ी’, सोच मगर है गँदला ,गँदला ।


वही  घोषणा पत्र पुराना, पढ़ पढ़ जनता को भरमाया ।

फिर चुनाव का मौसम आया ।


आजीवन बस खड़ा रहेगा, अन्तिम छोर खड़ा है ’बुधना’

हर दल वाले बोल गए हैं, - "तेरा भी घर होगा अपना "

जूठे नारों वादों से कब किसका पेट भला भर पाया।

फिर चुनाव का मौसम आया ।


-आनन्द.पाठक-


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