ग़ज़ल 356[32F]
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मिलता है बड़े शौक़ से वह हाथ बढ़ा कर ,
रखता है मगर दिल में वो ख़ंज़र भी छुपा कर ।
तहज़ीब की अब बात सियासत में कहाँ हैं
लूटा किया है रोज़ नए ख़्वाब दिखा कर ।
यह शौक़ है या ख़ौफ़ कि आदात है उसकी ,
मिलता है हमेशा वह मुखौटा ही चढ़ा कर ।
करने को करे बात वो ऊँची ही हमेशा ,
जब बात अमल की हो, करे बात घुमा कर ।
जिस बात का हो सर न कोई पैर हो, प्यारे !
उस बात को बेकार न हर बार खड़ा कर ।
यह कौन सा इन्साफ़, कहाँ की है शराफ़त ,
कलियों को मसलते हो ज़बर ज़ोर दिखा कर ।
’आनन’ तू करे और पे क्यों इतना भरोसा
धोखा ही जो मिलता है तुझे दिल को लगा कर।
-आनन्द.पाठक-
सं 29-06-24
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