गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

अनुभूतियाँ 171/58

 अनुभूतियां~ 171/58

681

जीवन चलता रहता अविरल

कहीं कठिन पथ, कहीं सरल है

जीवन इक अनबूझ पहेली

कभी शान्त मन ,कभी विकल है ।

682

सोन चिरैया रोज़ सुनाती

अपनी बीती नई कहानी

कभी सुनाती खुल कर हँस कर

कभी आँख में भर कर पानी ।


683

जब से तुम वापस लौटी हो

लौटी साथ बहारें भी हैं ।

चाँद गगन में अब हँसता है

साथ हँस रहे तारे भी हैं ।


684

अगर समझ में कमी रही तो

कब तक रिश्ते बने रहेंगे

स्वार्थ अगर मिल जाए इसमे

कब तक रिश्ते बचे रहेंगे ।


-आनन्द.पाठक-

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