अनुभूतियां~ 171/58
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जीवन चलता रहता अविरल
कहीं कठिन पथ, कहीं सरल है
जीवन इक अनबूझ पहेली
कभी शान्त मन ,कभी विकल है ।
682
सोन चिरैया रोज़ सुनाती
अपनी बीती नई कहानी
कभी सुनाती खुल कर हँस कर
कभी आँख में भर कर पानी ।
683
जब से तुम वापस लौटी हो
लौटी साथ बहारें भी हैं ।
चाँद गगन में अब हँसता है
साथ हँस रहे तारे भी हैं ।
684
अगर समझ में कमी रही तो
कब तक रिश्ते बने रहेंगे
स्वार्थ अगर मिल जाए इसमे
कब तक रिश्ते बचे रहेंगे ।
-आनन्द.पाठक-
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