शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

अनुभूतियाँ 172/59

 अनुभूतियाँ 172/59

685

बंजारों-सा यह जीवन है

साथ चला करती है माया

साथ साँस जैसे  चलती है

जहाँ जहाँ चलती है काया


686

समय कहाँ रुकता है, प्यारे !

धीरे धीरे चलता रहता ।

अपने कर्मों का जो फ़ल हो

इसी जनम में मिलता रहता ।


687

प्यास मिलन की क्या होती है

भला पूछना क्या आक़िल से 

वक़्त मिले तो कभी पूछना 

किसी तड़पते प्यासे दिल से । 


688

मन का जब दरपन ही धुँधला

खुद को कैसे पहचानोगे ?

राह ग़लत क्या, राह सही क्या

आजीवन कैसे जानोगे ?


-आनन्द.पाठ्क-

[ आक़िल = अक्ल वाला ]


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