बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

अनुभूतियाँ 169/56

 अनुभूतियाँ 169/56


673

ऐसे भी कुछ लोग मिलेंगे

ख़ुद को ख़ुदा समझते रहते

आँखों पर हैं पट्टी बाँधे

अँधियारों में चलते रहते ।


674

दिल जो कहता, कह लेने दो

कहने से मत रोको साथी !

दीपक अभी जला रहने दो

रात अभी ढलने को बाक़ी


675

माना राह बहुत लम्बी है

हमको तो बस चलना साथी

जो रस्मे हों राह रोकती

मिल कर उन्हे बदलना साथी


676

नीड बनाना कितना मुश्किल

उससे मुश्किल उसे बचाना

साध रही है दुनिया कब से

ना जाने कब लगे निशाना ।

-आनन्द पाठक-

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