अनुभूतियाँ 169/56
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ऐसे भी कुछ लोग मिलेंगे
ख़ुद को ख़ुदा समझते रहते
आँखों पर हैं पट्टी बाँधे
अँधियारों में चलते रहते ।
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दिल जो कहता, कह लेने दो
कहने से मत रोको साथी !
दीपक अभी जला रहने दो
रात अभी ढलने को बाक़ी
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माना राह बहुत लम्बी है
हमको तो बस चलना साथी
जो रस्मे हों राह रोकती
मिल कर उन्हे बदलना साथी
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नीड बनाना कितना मुश्किल
उससे मुश्किल उसे बचाना
साध रही है दुनिया कब से
ना जाने कब लगे निशाना ।
-आनन्द पाठक-
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