शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

ग़ज़ल 430 [04G ] : यह झूठ की दुनिया ,मियां !

 ग़ज़ल 430 [04-G)


2212---2212

यह झूठ् की दुनिया ,मियाँ !

सच है यहाँ बे आशियाँ ।


क्यों दो दिलों के बीच की

घटती नहीं है दूरियाँ ।


बस ख़्वाब ही मिलते इधर

मिलती नहीं हैं रोटियाँ ।


इस ज़िंदगी के सामने

क्या क्या नहीं दुशवारियाँ ।


हर रोज़ अब उठने लगीं

दीवार दिल के दरमियाँ ।


तुम चंद सिक्कों के लिए

क्यों बेचते आज़ादियाँ ।


किसको पड़ी देखें कभी

’आनन’ तुम्हारी खूबियाँ ।


-आनन्द.पाठक-

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