689
साथ अगर ना तुम होते तोकैसे कठिन सफर यह कटता
प्राण वायु ही जब ना हो तो
इस तन का फिर क्या मैं करता
690
नदिया की यह चंचल लहरें
साहिल से क्या क्या बतियाती
चाहे हों पथरीली राहें -
गीत मिलन के गाती जाती
691
मै कैसे यह खुद बतलाता
पूछा तुमने, बात बता दी
बदन तुम्हारा संग़़-ए-मरमर
ओठ गुलाबी, नैन शराबी
692
मन के अंदर द्वंद बहुत है
ग्रंथ कहे कुछ मन कुछ कहता
तेरे घर की राह अनेको
ज्ञानी भी उलझन मे रहता
-आनन्द.पाठक-
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