शनिवार, 1 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 174/61

 अनुभूतियाँ 174/61


693

शायद मैने ही देरी की

अपनी बात बताने में कुछ

बरसोंं लग जाएंगे शायद

दिल की चाह जताने में कुछ।


694

जब जब दूर गई तू मुझसे

कितने गीत रचे यादों में

ढूँढा करता हूँ सच्चाई

तेरे उन झूठे वादों में ।  


695

दोष किसी को क्या देता मैं

सब अपने कर्मों का फल है

सबको मिलता है उतना ही

 जिसका जितना भाग्य प्रबल है।


696

प्रेम चुनरिया मैने रँग दी,

बाक़ी जो है तुम भर देना।

आजीवन बस रँगी रहूँ मैं,

प्रीति अमर मेरी कर देना ।


-आनन्द पाठक-






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