अनुभूतियाँ 174/61
693
शायद मैने ही देरी की
अपनी बात बताने में कुछ
बरसोंं लग जाएंगे शायद
दिल की चाह जताने में कुछ।
694
जब जब दूर गई तू मुझसे
कितने गीत रचे यादों में
ढूँढा करता हूँ सच्चाई
तेरे उन झूठे वादों में ।
695
दोष किसी को क्या देता मैं
सब अपने कर्मों का फल है
सबको मिलता है उतना ही
जिसका जितना भाग्य प्रबल है।
696
प्रेम चुनरिया मैने रँग दी,
बाक़ी जो है तुम भर देना।
आजीवन बस रँगी रहूँ मैं,
प्रीति अमर मेरी कर देना ।
-आनन्द पाठक-
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