मंगलवार, 4 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 176/63

 अनुभूतियाँ 176/63


701

जब जब छोड. गई तुम मुझको,

नदी प्यार की फिर भी रहती ।

ऊपर ऊपर भले दिखे ना,

भीतर भीतर बहती रहती ।


702

तुम क्या जानो, दिल तेरे बिन

क्या क्या नहीं सहा करता है

नियति मान कर चुप रहता है

कुछ भी नहीं कहा करता है ।


703

राह देखती रहती निशदिन

वही प्रतीक्षारत हैं आँखें

आओगे तुम इक दिन वापस

लटकी अँटकी रहती साँसें


704

मन की सूनी कुटिया मे जब

और नहीं कोई रहता है

तब तेरी यादें रहती हैं

मन जिनसे बातें करता है


-आनन्द पाठक-

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