अनुभूतियाँ 176/63
701
जब जब छोड. गई तुम मुझको,
नदी प्यार की फिर भी रहती ।
ऊपर ऊपर भले दिखे ना,
भीतर भीतर बहती रहती ।
702
तुम क्या जानो, दिल तेरे बिन
क्या क्या नहीं सहा करता है
नियति मान कर चुप रहता है
कुछ भी नहीं कहा करता है ।
703
राह देखती रहती निशदिन
वही प्रतीक्षारत हैं आँखें
आओगे तुम इक दिन वापस
लटकी अँटकी रहती साँसें
704
मन की सूनी कुटिया मे जब
और नहीं कोई रहता है
तब तेरी यादें रहती हैं
मन जिनसे बातें करता है
-आनन्द पाठक-
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