मंगलवार, 25 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 179/66

 अनुभूतियाँ 179/66

713

सत्य कहाँ तक झुठलाओगे

छुपता नहीं, न दब पाएगा ।

ख़ुद को धोखा कब तक दोगे

झूठ कहाँ तक चल पाएगा ।


714

सुख दुख चलते साथ निरन्तर

जबतक जीवन एक सफ़र है

जितना उलझन मन के बाहर

अधिक कहीं मन के अंदर है।


715

वक़्त गुज़रने को गुज़रेगा

भला बुरा या चाहे जैसा

ज़ोर नहीं जो अगर तुम्हारा

ढलना होगा तुमको वैसा


716

क्या करना है तुमको सुन कर

कैसी गुज़र रही है मुझ पर

शायद तुमको खुशी न होगी
ज़िंदा रहता हूँ मर मर कर


-आनन्द.पाठक-


इसी अनुभूतियों कॊ आ0  विनोद कुमार उपाध्याय [ लखनऊ] के स्वर में यहाँ सुनें और आनन्द उठाएँ

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