अनुभूतियाँ 175/62
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होली आई ,तुम भी आओ,
खेलेंगे हम मिल कर होली ।
सात रंग से रँगना, प्रियतम !
प्रीति प्रणय हो या रंगोली ।
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मार न कान्हा यूँ पिचकारी,
एक रंग मे रँगी चुनरिया ।
चाहे जितना रंग लगा दे,
चढ़े न दूजो रंग, सँवरिया !
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होली का यह पर्व खुशी का
प्रेम रंग से तुम रँग देना ।
लाल गुलाल लगा कर सबको,
अपनी बाँहों में भर लेना ।
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अवधपुरी में सीता खेलें
वृंदावन में राधा रानी ।
रंग लगा कर गले लगाना
होली की यह रीति पुरानी ।
-आनन्द.पाठक-
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