रविवार, 2 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 175/62 [ होली]

 अनुभूतियाँ 175/62


697

होली आई ,तुम भी आओ,

खेलेंगे हम मिल कर होली ।

सात रंग से रँगना, प्रियतम !

प्रीति प्रणय हो या रंगोली ।


698

मार न कान्हा यूँ पिचकारी,

एक रंग मे रँगी चुनरिया ।

चाहे जितना रंग लगा  दे,

चढ़े न दूजो रंग, सँवरिया !


699

होली का यह पर्व खुशी का

प्रेम रंग से तुम रँग देना ।

लाल गुलाल लगा कर सबको,

अपनी बाँहों में भर लेना ।


700

अवधपुरी में सीता खेलें

वृंदावन में राधा रानी । 

रंग लगा कर गले लगाना

होली की यह रीति पुरानी ।


-आनन्द.पाठक-


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