रविवार, 16 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 177/64

अनुभूतिया 177/64

705
मेरी कुटिया पर ही केवल
सदा नजर रखती बिजली है
तडक भडक बस करती रहती
कभी नहीं गिरती पगली है ।

706
कल तक थे जो शिखर बिन्दु पर
गिरे पड़े है , खेला यह भी
सिंहासन पर धूल जमी है
एक तमाशा, मेला यह भी

707
महफ़िल सजी रहा करती थी
बजती थी नौबत-शहनाई
रंग महल वीरान हुए अब
ईंट ईंट दे रही गवाही ।

708
लोग तुम्हे तब तक पूछेंगे
जब तक उनको तुमसे मतलब
बाद तुम्हे वो छोड़ चलेंगे
ना जाने किस मोड़ कहाँ कब

-आनन्द.पाठक-

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