गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

अनुभूतियाँ 167/54

 अनुभूतियाँ 167/54

665

लोग समझते रहे हमेशा

अपनी अपनी ही नज़रों से

तौल रहे है प्रेम हमारा

काम-वासना के पलड़ों से।


666

नहीं भुलाने वाली बातें

तुम्ही बता दो कैसे भूलें ?

माना हाथ हमारे बौने

चाह मगर थी, तुमको छू लें।


667

ऊषा की तुम प्रथम किरण बन

आती हो जब द्वार हमारे ,

खुशबू से भर जाता आँगन

खिल जाते हैं सपने सारे ।


668

आशा और निराशा के संग

 तुमने जितना पिया अँधेरा

एक अटल विश्वास प्रबल था

तब जा कर यह हुआ सवेरा ।


-आनन्द.पाठक--




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