मफ़ऊलु-फ़ाइलातुन--// मफ़ऊलु --फ़ाइलातुन
221-------2122-----// 221-- -------2122
बह्र-ए-मुज़ारिअ’ मुसम्मन अख़रब
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ग़ज़ल 021[46 A] :लहरों के साथ ....ओके
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बह्र-ए-मुज़ारिअ’ मुसम्मन अख़रब
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ग़ज़ल 021[46 A] :लहरों के साथ ....ओके
लहरों के साथ जो भी बहने
लगे लहर में ,
ऐसे ही लोग क़ाबिल समझे गए सफ़र में ।
ऐसे ही लोग क़ाबिल समझे गए सफ़र में ।
,ऐसे ही लोग क़ाबिल समझे गए सफ़र में
कुछ ख़ास हस्तियाँ ही छाईं रहीं ख़बर में ।
कुछ ख़ास हस्तियाँ ही छाईं रहीं ख़बर में ।
दीवार पर लिखे कुछ नारों-सा मिट गया वह ,
जो कुछ वज़ूद था भी आकर मिटा नगर में ।
हम एक दूसरे से क्यों ख़ौफ़ खा रहे हैं ,
खंजर छुपा के चलते जब सब है रहगुज़र में ?
साँपों की बस्तियों में इक खलबली मची है
क्या आदमी नगर का फिर आ गया नज़र में ?
दिल नातवान मेरा, कैसे करे भरोसा ,
बदनीयती के मारे, सब हिर्स के असर में ।
आँखों में भर के आँसू ,लब पर दुआ की बातें ,
डर है यही कि ’आनन’ डँस ले न वो डगर में ।
-आनन्द.पाठक
[सं 21-05-18]