मंगलवार, 16 दिसंबर 2025

ग़ज़॒ल 454 [28-जी] बदज़ुबानी पर उतर आने लगा वो--


ग़ज़ल 254 [28-जी] : बदज़ुबानी पर उतर आने लगा वो--

  2122---2122---2122

बदज़ुबानी पर उतर आने लगा वो

पस्ती.ए.अख़्लाक़ दिखलाने लगा वो


जब से उसने छोड़ दी अपनी शराफ़त 

और भी नंगा नज़र आने लगा वो ।


खुद लिखा अपना क़सीदा ख़ुद पढ़ा जब

बेसबब खुद पर ही इतराने लगा वो ।


ख़ुद गरज़ था या कि कुछ मज़बूरियाँ थीं

सत्य की हर बात झुठलाने लगा वो ।


हाथ में उसके बग़ावत की क़लम है

गीत चारण की तरह गाने लगा वो ।


जब दलीलें थीं नहीं कुछ पास उसके

बेसबब मुझ पर ही चिल्लाने लगा वो ।


जब गिला शिकवा किए हम उस से ’आनन’

बारहा झूठी कसम खाने लगा वो ।


-आनन्द.पाठक ’आनन’

पस्ती ए अख़लाक़ = चारित्रिक पतन

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