ग़ज़ल 254 [28-जी] : बदज़ुबानी पर उतर आने लगा वो--
2122---2122---2122
बदज़ुबानी पर उतर आने लगा वो
पस्ती.ए.अख़्लाक़ दिखलाने लगा वो
जब से उसने छोड़ दी अपनी शराफ़त
और भी नंगा नज़र आने लगा वो ।
खुद लिखा अपना क़सीदा ख़ुद पढ़ा जब
बेसबब खुद पर ही इतराने लगा वो ।
ख़ुद गरज़ था या कि कुछ मज़बूरियाँ थीं
सत्य की हर बात झुठलाने लगा वो ।
हाथ में उसके बग़ावत की क़लम है
गीत चारण की तरह गाने लगा वो ।
जब दलीलें थीं नहीं कुछ पास उसके
बेसबब मुझ पर ही चिल्लाने लगा वो ।
जब गिला शिकवा किए हम उस से ’आनन’
बारहा झूठी कसम खाने लगा वो ।
-आनन्द.पाठक ’आनन’
पस्ती ए अख़लाक़ = चारित्रिक पतन
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