एक नवगीत
2122---2122--2 =16
आँकड़ों का खेल जारी है, सच दबा है, झूठ भारी है ।
भीड़ देखी हो गए गदगद
तालियों की भीख माँगे हैं ।
रोशनी चुभती उन्हे हरदम
पास उनके सौ बहाने हैं ।
भाषणों में नौकरी तो है, अस्ल में बेरोजगारी है ।
आँकड़ों का खेल जारी है ------
हाथ जोड़े आ रहे है हो जो
सर झुका कर ’वोट’ माँगोगे ।
सैकड़ों सपने दिखा कर तुम’
बाद सब कुछ भूल जाओगे ।
वायदों पर वायदे करना, भूलना आदत तुम्हारी है ।
आँकड़ों का खेल जारी है ------
मुफ़्त की है रेवड़ी सबको,
एक धेला भी नहीं देना ।
बात लाखों की, हज़ारों की
बस उन्हे तो ’वोट’ है लेना।
बात में जादूगरी उनकी, सोच में भी होशियारी है ।
आँकड़ों का खेल जारी है ------
-आनन्द.पाठक ’आनन’-
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