शनिवार, 27 दिसंबर 2025

गीत 093 : आँकड़ो का खेल जारी है--

 एक नवगीत 

2122---2122--2 =16

आँकड़ों का खेल जारी है, सच दबा है, झूठ भारी है ।

भीड़ देखी हो गए गदगद

तालियों की भीख माँगे हैं ।

रोशनी चुभती उन्हे हरदम

पास उनके सौ बहाने हैं ।

भाषणों में नौकरी तो है, अस्ल में बेरोजगारी है ।

आँकड़ों का खेल जारी है ------


हाथ जोड़े आ रहे है हो जो

सर झुका कर ’वोट’ माँगोगे ।

सैकड़ों सपने दिखा कर तुम’

बाद सब कुछ भूल जाओगे ।

वायदों पर वायदे करना, भूलना आदत तुम्हारी है ।

आँकड़ों का खेल जारी है ------


मुफ़्त की है रेवड़ी सबको,

एक धेला भी नहीं देना ।

बात लाखों की, हज़ारों की

बस उन्हे तो ’वोट’ है लेना।

बात में जादूगरी उनकी, सोच में भी होशियारी है ।

आँकड़ों का खेल जारी है ------


-आनन्द.पाठक ’आनन’-


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