अनुभूतियाँ : क़िस्त 007 ओके
025
प्रेम स्नेह जब रिक्त हो गया
प्रणय-दीप यह जलता कब तक?
रात अभी पूरी बाक़ी है
लौ- बाती यह चलता कब तक?
026
दुष्कर हैं पथरीली राहें-
हठ था कि तुम साथ चलोगी।
कितना तुम को समझाया था,
हर ठोकर पर हाथ मलोगी।
027
जीवन पथ का राही हूँ मैं,
एक अकेला कई रूप में ।
आजीवन चलता रहता हूँ,
कभी छांव में, कभी धूप में।
028
ना जाने क्यों नहीं बजाते
कान्हा वंशी जमुना तीरे
फिर भी ’राधा’ आती रहती
नयन झुकाए धीरे धीरे
-आनन्द.पाठक-