सोमवार, 1 दिसंबर 2025

ग़ज़ल 450 [ 24-जी] : जिधर माया, तुम्हे तो बस--

 

ग़ज़ल 450 [ 24-जी] : जिधर माया, तुम्हे तो बस--

1222---1222---1222

जिधर माया, तुम्हे तो बस उधर जाना
कि अपना क्या, है अपना दिल फ़क़ीराना ।

बदलते लोग कुछ ऐसे ज़माने में
कि जैसे रंग गिरगिट का बदल जाना ।

परिंदे छोड़ कर जाते शजर को जब 
उन्हें फिर लौट कर वापस कहाँ आना ।

कहानी एक ही जैसी सभी की है ,
करोगे क्या मेरा सुनकर भी अफ़साना ।

गुज़र जाएगी अपनी मुफ़लिसी इक दिन
किसी के सामने क्या हाथ फैलाना ।

कभी है ज़िंदगी में शादमानी तो 
कभी ग़म से मेरा रहता है याराना ।

यहीं  है राह-ए- मयख़ाना भी ,मसजिद भी 
तुम्ही अब तय करो ’आनन’ किधर जाना ।

-आनन्द. पाठक ’आनन’-