69
वह निर्णय था स्वयं तुम्हारा
ग़लत किया या सही किया था
अब पछताने से क्या होगा
दिल ने तुम से, सही कहा था ।
70
इतना कर न भरोसा, पगले !
उड़ते बादल का न ठिकाना
आज यहाँ, कल और कहीं हो
उसको क्या हमराज़ बनाना ।
71
इन आँखों से जगते-सोते
तू भी जान रहा है, प्यारे!
सपने हैं ,कब पूरे होते ।
72
छुप छुप कर बातें करतीं थी
यादें तेरी तनहाई में
कितने स्वप्न बुना करती थी
जीवन की नव तरूणाई में ।
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