गुरुवार, 22 सितंबर 2022

अनुभूतियाँ : किस्त 18

 

69

 वह निर्णय था स्वयं तुम्हारा

 ग़लत किया या सही किया था

 अब पछताने से क्या होगा

 दिल ने तुम से, सही कहा था ।

 

70

इतना कर न भरोसा, पगले !

उड़ते बादल का न ठिकाना

आज यहाँ, कल और कहीं हो

उसको क्या हमराज़ बनाना ।

 

71

झूठे सपने मत देखा कर

इन आँखों से जगते-सोते

तू भी जान रहा है, प्यारे!

सपने हैं ,कब पूरे होते ।

 

72

छुप छुप कर बातें करतीं थी

यादें तेरी तनहाई में

कितने स्वप्न बुना करती थी

जीवन की नव तरूणाई में ।


 

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