अनुभूतियाँ : क़िस्त 021 ओके
81
सच क्या बस उतना होता है
जितना हम तुम देखा करते ?,
कुछ ऐसा भी सच होता है
अनुभव कर के सोचा करते
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क्या कहना है अब सब छोड़ो
क्या दिल ने चाहा, क्या पाया
मेरे जीवन में चौराहा-
कितनी बार सफ़र में आया ।
83
नए वर्ष के प्रथम दिवस पर
सब के थे संदेश, बधाई,
दिन भर रहा प्रतीक्षारत मैं
कोई ख़बर न तेरी आई ?
84
सोच रही क्यों अलग राह की?
ऐसा तो व्यक्तित्व नहीं है ,
चाँद-चाँदनी एक साथ हैं
अलग अलग अस्तित्व नहीं है ।
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