गुरुवार, 22 सितंबर 2022

अनुभूतियाँ : किस्त 021

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 021 ओके

81

सच क्या बस उतना होता है

जितना हम तुम देखा करते ?,

 कुछ ऐसा भी सच होता है

अनुभव कर के सोचा करते

 

82

क्या कहना है अब सब छोड़ो

क्या दिल ने चाहा, क्या पाया

मेरे जीवन में चौराहा-

कितनी बार सफ़र में आया ।

83

नए वर्ष के प्रथम दिवस पर

सब के थे संदेश, बधाई,

दिन भर रहा प्रतीक्षारत मैं

कोई ख़बर न तेरी आई ?

 

84

सोच रही क्यों अलग राह की?

ऐसा तो व्यक्तित्व नहीं है ,

चाँद-चाँदनी एक साथ हैं

अलग अलग अस्तित्व नहीं है ।

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