गुरुवार, 22 सितंबर 2022

अनुभूतियाँ : किस्त 23

 

89

ईद हमारी आज हुई है

चाँद जो लौटा घर को अपने,

एक झलक पाने की ख़ातिर

रोज़ा रखा माह भर हमने ।

 

90

इतनी दूर आ गए हम तुम

लौट के अब जाना नामुमकिन

और कहाँ तक साथ चलेंगे

प्रश्न वही है अब भी लेकिन।

91

हाथ न रख्खो इन कंधों पर

आँसू हैं इनको बहने दो,

 मैने इनको पाल रखा है

दर्द हमारे संग रहने दो ।

92

होली का मौसम आया है,

फ़गुनहटा’ आँचल सरकाए,

मादक हुई हवाएँ, प्रियतम !

रह रह कर है मन भटकाए ।

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