ग़ज़ल 260 [25 इ]
221--1222--//221--1222
कुछ और सफ़ाई में कहता भी तो क्या कहता
दुनिया ने जो समझा है, तुमने भी वही समझा
इलज़ाम लगाना तो आसान बहुत सबको
उँगली तो उठाते हो, अपना न तुम्हें दिखता
करना है तुझे जो कुछ, कर अपने भरोसे पर
दुनिया की फ़क़त बातें, बातों में है क्यों उलझा
तड़्पूँ जो इधर मैं तो, वो भी न तड़प जाए
हर बार मेरे दिल में रहता है यही खटका
रखता है नज़र कोई इक ग़ैब के पर्दे से
छुपना भी अगर चाहूँ. ख़ुद को न छुपा सकता
माना कि भरम है सब तुम हो तो इधर हम हैं
हम-तुम न अगर होते, दुनिया में है क्या रख्खा
’आनन’ ये ज़मीं अपनी जन्नत से न कम होती।
हर शख़्स मुहब्बत की जो राह चला करता ।
-आनन्द.पाठक-
4 टिप्पणियां:
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल
उम्दा अश्यार
आभार आप का🙏🙏
इनायत आप की🙏🙏
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