गुरुवार, 22 सितंबर 2022

अनुभूतियाँ : किस्त 25

 

97

दो दिन की उस मुलाकात में

जीवन भर के सपने देखे,

पागल था दिल दीवाना था

औक़ात नहीं अपने देखे ।

  

98

टूट चुका है दिल अन्दर से

तुमको नहीं दिखाई देगा,

अन्दर अन्दर ही रोता है

तुमको नहीं सुनाई देगा ।

 

99

ऎ दिल ! क्यों सर पीट रहा है

बात ये क्या मालूम नहीं थी ?

जितना उसको समझ रहा था

वो उतनी मासूम नहीं थी ।

 

100

 हँस कर मिलना जुलना मेरा

दुनिया ने कमजोरी समझा,

मेरी ख़ामोशी को अकसर,

लोगों ने मजबूरी समझा  

 

 

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-09-2022) को  "सूखी मंजुल माला क्यों?"   (चर्चा-अंक 4562)  पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'