गुरुवार, 22 सितंबर 2022

अनुभूतियाँ : किस्त 19

 

73

कोई बची न चाहत मन में

और न मन में कुछ दुविधा है

प्यार-मुहब्बत लगता ऐसे

पल दो पल की नई विधा है ।

 

74

एक समय था वह भी जब तुम

मेरी ग़ज़ल हुआ करती थी,

साथ रहेगा जीवन भर का-

बार बार तुम दम भरती थी ।

 

75

सुबह सुबह ही उठ कर तुम ने
अल्हड़ सी जब ली अँगड़ाई,

टूट गया दरपन शरमा कर

खुद से खुद तुम भी शरमाई ।

 

76

सोच रही हो अब क्या, मुझमें

क्या है कमियाँ, क्या अच्छा  है

नेक चलन, बदनाम है ’आनन’

इन बातों में क्या रख्खा  है !


 

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