रविवार, 24 दिसंबर 2023

ग़ज़ल 349[25F] : चिराग़ों की हवाओं से---

ग़ज़ल 349 [25F]

1222---1222---122


चिराग़ों की हवाओं से ठनी है ,

मगर कब रोशनी इनसे डरी है ।


अगर दिखती नहीं तुमको बहारें,

तुम्हारी ही नज़र में कुछ कमी है ।


किसी के प्यार में ख़ुद को मिटा दे ,

भले ही चार दिन की ज़िंदगी है ।


जगाने को यहाँ रिश्ते हज़ारों ,

निभाने को मगर किसको पड़ी है ।


जगाएगा तो जग जाएगा इक दिन ,

तेरे अन्दर जो सोया आदमी है ।


नहीं कुछ देखना है और मुझको

मेरे दिल में तेरी सूरत बसी है ।


सभी में बस उसी का अक्स देखा

अजब ’आनन’ तेरी दीवानगी है ।


-आनन्द.पाठक-

सं 29-06-24

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