ग़ज़ल 349 [25F]
1222---1222---122
चिराग़ों की हवाओं से ठनी है ,
मगर कब रोशनी इनसे डरी है ।
अगर दिखती नहीं तुमको बहारें,
तुम्हारी ही नज़र में कुछ कमी है ।
किसी के प्यार में ख़ुद को मिटा दे ,
भले ही चार दिन की ज़िंदगी है ।
जगाने को यहाँ रिश्ते हज़ारों ,
निभाने को मगर किसको पड़ी है ।
जगाएगा तो जग जाएगा इक दिन ,
तेरे अन्दर जो सोया आदमी है ।
नहीं कुछ देखना है और मुझको
मेरे दिल में तेरी सूरत बसी है ।
सभी में बस उसी का अक्स देखा
अजब ’आनन’ तेरी दीवानगी है ।
-आनन्द.पाठक-
सं 29-06-24
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें