रविवार, 3 दिसंबर 2023

ग़ज़ल 345[21F] : देखने में हों लगते भले--

 ग़ज़ल 345[21F]

212---212---212


देखने में हैं अच्छे  भले

सोज़-ए-दिल से सभी हैं जले


एक धुन हो, लगन हो जिसे

पाँव के क्या उसे आबले ।


रोशनी उसको भाती नहीं

जो अंधेरों में अब तक पले ।


देख कर आइना सामने

आप मुड़ कर किधर को चले ?


रंज किस बात का है तुझे

यार आ कर तो लग जा गले 


आदमी जो नहीं कर सका

वक़्त ने कर दिए फ़ैसले ।


जिस मकाँ में रहा उम्र भर

छोड़ कर आख़िरत को चले ।


तुमने देखा ही ’आनन’ कहाँ

इन चिराग़ों के पुरहौसले ।


-आनन्द.पाठक-


आख़िरत = परलोक

सं 28-06-24

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