ग़ज़ल 345[21F]
212---212---212
देखने में हैं अच्छे भले
सोज़-ए-दिल से सभी हैं जले
एक धुन हो, लगन हो जिसे
पाँव के क्या उसे आबले ।
रोशनी उसको भाती नहीं
जो अंधेरों में अब तक पले ।
देख कर आइना सामने
आप मुड़ कर किधर को चले ?
रंज किस बात का है तुझे
यार आ कर तो लग जा गले
आदमी जो नहीं कर सका
वक़्त ने कर दिए फ़ैसले ।
जिस मकाँ में रहा उम्र भर
छोड़ कर आख़िरत को चले ।
तुमने देखा ही ’आनन’ कहाँ
इन चिराग़ों के पुरहौसले ।
-आनन्द.पाठक-
आख़िरत = परलोक
सं 28-06-24
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें