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अगम व्यथाओं का होता है
एक समन्दर सब के अन्दर
कश्ती पार लगेगी कैसे
जूझा करते हैं जीवन भर
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ग़लत बयानी करते रहना
ख़ुद ही उलटे शोर मचाना
नया चलन हो गया आजकल
सच की बातों को झुठलाना
515
पंडित जी ने बतलाया था
शर्त तुम्हारी पता तुम्हारा
पाप-पुण्य की ही गणना में
बीत गया यह जीवन सारा
516
सबकी अपनी व्यथा-कथा है
अपने अपने विरह मिलन की
सब के आँसू एक रंग के
मौन कथाएँ पीर नयन की
-आनन्द.पाठक-
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