ग़ज़ल 350 [26F]
1222---1222---1222---1222
चुनावों का ये मौसम, है तुझे सपने दिखाएगा
घिसे नारे पिटे वादे, वही फिर से सुनाएगा ।
थमा कर झुनझुना हमको, हमें बहला रहा कब से
सभी घर में है ख़ुशहाली, वो टी0वी0 पर दिखाएगा ।
सजा कर आँकड़े संकल्प पत्रों में हमें देगा
वो अपनी पीठ अपने आप ख़ुद ही थपथाएगा ।
किनारे पर खड़े होकर नसीहत करना आसाँ है
उतर कर आ समन्दर में , नसीहत भूल जाएगा ।
इधर टूटे हुए चप्पू , उधर दर्या है तूफानी ,
हुई अब नाव भी जर्जर, तू कैसे पार पाएगा ?
सभी अपने घरों में बन्द हो अपना ही सोचेंगे
लगेगी आग बस्ती में ,बुझाने कौन आएगा ।
किसी की अन्धभक्ति में चलेगा बन्द कर आँखें
गिरेगा तू अगर ’आनन’ ग़लत किसको बताएगा ।
-आनन्द.पाठक-
सं 29-06-24
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