ग़ज़ल 264 [29 E]
2122---1212---22
आप से हाल-ए-दिल छुपा है क्या
अर्ज़ करना कोई ख़ता है क्या ।
आप ही जब न हमसफ़र मेरे
फिर सफ़र में भला रखा है क्या
सामने हो के मुँह घुमा लेना
ये तुम्हारी नई अदा है क्या
दर्द उठता है बेनियाजी पर
दर्द पारीन है नया है क्या
गर्मी-ए-शौक़ तो जगा दिल में
देख जीने में फिर मज़ा है क्या
छोड़ कर सब यहाँ से जाना है
साथ लेकर कोई गया है क्या
तुम तो ऐसे न थे कभी 'आनन'
आजकल तुम को हो गया है क्या
-आनन्द.पाठक-
दर्द-ए-पारीन = पुराना दर्द
6 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया ग़ज़ल।
लाजवाब ग़ज़ल।
छोड़ कर सब यहाँ से जाना है
साथ लेकर कोई गया है क्या
जी सुंदर गजल ।
धन्यवाद आप का
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
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