गुरुवार, 22 दिसंबर 2022
अनुभूतियाँ : क़िस्त 040
अनुभूतियाँ : क़िस्त 039
153
बातें सभी किताबों में हैं,
कभी सामना हुआ नहीं पर
आते रहते ख़्वाबों में हैं ।
लिखा हुआ ख़त भेज न पाया ।
लिखने की तो बात बहुत थी
लेकिन भाव सहेज न पाया ।
कुछ तो होगा रब के मन में,
रोती क्यों है निश-दिन, पगली!
अच्छा ही होगा जीवन में।
मेरी यह अनकही कहानी
सुन ले कोई अगर इसे तो
आँखों में भर आए पानी ।
-आनन्द.पाठक-
अनुभूतियाँ : क़िस्त 038
अनुभूतियाँ : क़िस्त 038 ओके
149
इतने दिन तक तुम ने मुझको
जाँचा-परखा, देखा होगा ,
कितना साथ निभा पायेगा
दिल से अपने पूछा होगा ।
150
मेरी हसरत, तेरी हसरत
बीज प्यार का छुप छुप बोती,
आगे तो अब रब की मरजी
उल्फ़त होगी या ना होगी।
151
सूनेपन में दीवारों से
बातें करती यादें सारी
मैं कुछ कहता इससे पहले
बोल उठी तसवीर तुम्हारी ।
152
दिल का दरपन तोड़ गई तुम
हुआ आइना टुकड़ा टुकड़ा
चुन चुन कर बैठा हूँ कब से
किसे सुनाऊँ अपना दुखड़ा ।
-आनन्द पाठक-
अनुभूतियाँ : क़िस्त 037
अनुभूतियाँ : क़िस्त 037 ओके
145
भूल तुम्हारी थी या मेरी
कौन इसे अब बतलाएगा ?
बात शेष जब हो ही गई तो
व्यर्थ कोई क्या समझाएगा ?
146
आने को तो आएगी ही
फिर बहार मन के उपवन में,
पर फ़ूलों पर रंग न होगा
पहले था जैसा जीवन में ।
147
दिल में कोई अगन प्रेम की
लगती है तो लग जाने दो,
चाह, तमन्ना, इश्क़, आरज़ू
धीरे धीरे जग जाने दो ।
148
छोड़ गई हो मुझे अकेला
तुमने दिया सहारा मुझको,
मैं तो कब का टूट चुका था
जीवन मिला दुबारा मुझको ।
-आनन्द.पाठक-
अनुभूतियाँ : क़िस्त 036
अनुभूतियाँ : क़िस्त 036 ओके
141
जो कुछ भी था पास हमारे
किया समर्पित तुम को मन से,
क्यों अर्पण स्वीकार नहीं था ?
रही शिकायत क्या पूजन से ?
142
भाव नही जब समझा तुमने
और न समझी दिल की सीरत,
उपहारों में देखी तुमने
उपहारों की क्या है कीमत ?
143
पीछे मुड़ कर क्या देखूँ मैं
बीत गया सो बीत गया अब
आशाओं की किरण सामने
राग नया है, गीत नया अब ।
144
चाहत को, एहसास, प्यार को
तुमने एक दिखावा समझा
विकल हॄदय के आर्तनाद को
तुमने एक छलावा
समझा ।
-आनन्द.पाठक-
बुधवार, 21 दिसंबर 2022
अनुभूतियाँ : क़िस्त 035
अनुभूतियाँ : क़िस्त 035 ओके
137
जाओ जिसके साथ है जाना
क़दम क़दम पर साथ निभाना,
मेरा शुभ आशीष तुम्हें है-
उससे भी ना खेल रचाना ।
138
लाखों
तारे नभ में लेकिन
टूट
गया जब एक सितारा
चाँद
कहाँ सोचा करता है
टूटा
किसका कहाँ सहारा
139
बीत गई यह सारी उमरिया
भाग दौड़ ही करते करते ,
सुबह शाम बस दिन काटा है
पाप-पुण्य से डरते डरते ।
140
जिस दिन लगे तुम्हें कुछ ऐसा
बहुत हो चुका साथ हमारा
उस दिन राह अलग कर लेना
कुछ न कहेगा दिल बेचारा ।
-आनन्द.पाठक-
अनुभूतियाँ : क़िस्त 034
अनुभूतियाँ :क़िस्त 034 ओके
133
हर दिन होते नए बहाने
सब बातों के पास तुम्हारे,
आना ही जब तुम्हें नहीं है
क्यों करती रहती हो इशारे ?
134
आया है ऋतुराज का मौसम
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन,
तुम भी आ जाते- भूले से
दिल हो जाता खिल कर मधुवन ।
135
मजबूरी तो नहीं है कोई
खुला हुआ यह इक बन्धन है,
जब तुम चाहो लौट के आना
स्वागत है प्रिय ! अभिनन्दन है।
136
धरती खींच रही चन्दा को
चन्दा भी है खींचा करता
आकर्षण का सरल नियम है
इसमे कोई क्या कर सकता ?
-आनन्द.पाठक-
अनुभूतियाँ : क़िस्त 033
अनुभूतियाँ : क़िस्त 033 ओके
129
क्यों चिन्ता में डूबी रहती?
सबके साथ यही होता है,
कोई पा जाता है मंज़िल
कोई आजीवन रोता है ।
130
झूठ भले हो जितना सुन्दर
होते उसके पाँव नहीं है
सच तो चलता रहे निरन्तर
सच को मिलता छाँव नहीं है।
131
सच की राह बहुत लम्बी है
झूठ डगर पर हाथ मलोगी,
दोनों राह तुम्हारे सम्मुख
सोचो तुम किस राह चलोगी?
132
प्रश्न यही सौ बार उठा है
रिश्ता किसने तोड़ा पहले ,
इतने दिन तक साथ चली थी
फिर किसने मुँह मोड़ा पहले ।
-आनन्द.पाठक
अनुभूतियाँ: किस्त 032
अनुभूतियाँ : क़िस्त 032
125
जब से तुम हमराह हुई हो
साथ हमारे ख़ुद ही मंज़िल ,
और हमे अब क्या करना है
आगे राह भले हो मुशकिल ।
126
’और मिल गया होगा कोई’
सोचा तुमने, कैसे सोचा ?
मन में तुम्हारे क्यों दुविधा है?
मुझ पर क्या अब नहीं भरोसा ?
127
लटें तुम्हारी छू कर आते
प्रात-समीरण गाते सरगम,
पूछ रहीं हैं कलियाँ कलियाँ
बेमौसम क्यों आया मौसम ?
128
पास भी आकर दूर हो गया
दिल ने जिसको चाहा हरदम
जाने किसकी नज़र लगी थी
जाने कैसा था वह जानम !
-आनन्द.पाठक-
अनुभूतियाँ : क़िस्त 031
अनुभूतियाँ 031 ओके
121
अंगारों को गठरी में रख
बाँध सका है कौन आजतक ?
दो-धारी तलवार प्यार की
साध सका है कौन आजतक ?
122
आज खड़ा हूँ दोराहे पर
दोनों ही राहों में उलझन ,
एक राह में सुखद कल्पना
दूजी राह व्यथित रहता मन ।
123
मेरी चाहत एक दिखावा
कह कर तुम ने किया किनारा ,
शायद तुमने देखा ना हो
जीता कैसे दिल बेचारा ।
124
साथ अगर तुम छोड़ न दोगी
साथ तुम्हारे चल सकता हूँ ,
और किसी को चाहूँ, तौबा
तुमको नही बदल सकता हूँ ।
-आनन्द.पाठक-
रविवार, 18 दिसंबर 2022
अनुभूतियाँ : क़िस्त 030
अनुभूतियाँ 030 ओके
117
राहगुज़र जो नहीं तुम्हारी
राह हमारे लिए व्यर्थ है ,
अगर सफ़र में साथ नहीं तुम
सफ़र हमारा, बिना अर्थ है ।
118
ॠषिवर, मुनिवर, ज्ञानी, ध्यानी
बात यही सब समझाते हैं
कर्म तुम्हारा, नियति तुम्हारी
दोनों अलग अलग बातें हैं
119
पहले ही मालूम मुझे था
अपनी सीमाएँ मजबूरी
सफ़र शुरू होने से पहले
तुमने स्वयं बना ली दूरी ।
120
सूरज चढ़ता सुबह अगर तो
शाम शाम तक ढलना ही है,
समय चक्र है घूमा करता
मौसम यहाँ बदलना ही है ।
-आनन्द.पाठक-