दोहे 18: चुनावी दोहे
झूठ बोल कर चल दिया, अफ़वाहों का दौर ।
सच की कसमें खा रहा, झूठों का सिरमौर ॥
सच की कसमें खा रहा, झूठों का सिरमौर ॥
मार गुलाटी आ गए, पलटू जी इस पार ।
कहीं न जाना अब उन्हें, कहते बारम्बार ।
संविधान के नाम पर, करते है हुड़दंग ।
चील कबूतर कर रहें, साथ साथ सतसंग ।।
करना धरना कुछ नहीं, करते है बकवास ।
ऐसे नेता पर करे , क्या कोई विश्वास ॥
खुद को जो समझा किया, शेरों का सरदार।
कुर्सी के अति मोह मे, बेंच दिया दस्तार ।।
पहले जैसा जोश कहाँ, कहाँ रही वह धार ।
कंधे कंधे चल रही, यह लँगड़ी सरकार ।।
जब चुनाव के 'बूथ' पर, करना हो मतदान ।
कैसा है वह आदमी, कर लेना पहचान ।।
-आनन्द पाठक-
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