बुधवार, 29 मई 2024

ग़ज़ल 382[46F]: आप का शौक़ है एहसान जताए रखना

 ग़ज़ल 382[46F] 

2122---1122---1122--22


आप का शौक़ है एहसान जताए रखना

मेरी मजबूरी है रिश्तों को जगाए रखना।


आप की सोच में वैसे तो अभी ज़िंदा हूँ

वरना जीना है भरम एक बनाए रखना ।


सच को अर्थी न मिली, झूठ की बारात सजी

ऐसी बस्ती में बसे चीख दबाए रखना ।


जुर्म इतना था मेरा झूठ को क्यों झूठ कहा

जिसकी इतनी थी सज़ा,ओठ सिलाए रखना।


 इन अँधेरों मे कोई और न मुझ-सा भटके

कोई आए न सही दीप जलाए रखना ।


 कौन सी बात हुई व्यर्थ की बातों पर भी

आसमाँ हर घड़ी सर पर ही उठाए रखना।


राजदरबार में ’आनन’ भी मुसाहिब होता

शर्त इतनी थी कि बस सर को झुकाए रखना।


-आनन्द.पाठक- 

सं 01-07-24

मुसाहिब = दरबारी

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