ग़ज़ल 368/13-A
221---1222//221---1222
क्या मुझको समझना है, क्या तुमको बताना है
किरदार अधूरा है, झूठा ये फ़साना है ।
इस एक निज़ामत के, तुम एक अदद पुर्जा ,
नाज़िम तो नहीं ख़ुद हो, जाने ये ज़माना है ।
तुम चाँद सितारों की बातों में न खो जाना ,
मक़्सूद न ये मंज़िल , जीने का बहाना है ।
रुकने से कभी तेरे, दुनिया तो नहीं रुकती
यह मन का भरम तेरा, कच्चा है पुराना है ।
माना कि बहुत दूरी, हम भी न चले होंगे,
जाना है बहुत आगे, हिम्मत को जगाना है ।
हटने से तो अच्छा है, लड़ना है अँधेरों से
हर मोड़ उमीदों का , इक दीप जलाना है ।
हो काम भले मुशकिल, डरना न कभी ’आनन’
जन गण के लिए हम को, इक राह बनाना है ।
-आनन्द.पाठक-
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