शनिवार, 25 मई 2024

ग़ज़ल 379 [ 44A] : जब ग़रज़ उनकी तो रिश्तों --

 ग़ज़ल 379 [44A]

2122---1122---1122---112/22


जब ग़रज़ उनकी हो, रिश्तों का सिला देते हैं

काम जो हमको पड़े, हमको भगा देते हैं ।

 

उनके एहसान को मैने तो सदा याद रखा

मेरे एहसान को कसदन वो भुला देते हैं ।

 

आप के सर जो झुके बन्द मकानो में झुके

मैने सजदा जो किया , सर को उड़ा देते हैं ।

 

उनका इन्साफ़ यही है तो कोई बात नहीं

जुर्म करता है कोई, मुझको सज़ा देते हैं ।

 

ज़िंदगी है सदा उनके ही क़सीदे पढ़ती

देश के नाम पे गरदन जो कटा देते  हैं ।

 

आप गर ख़ुश हैं तो हमको न शिकायत न गिला

वरना अब लोग कहाँ ऐसा सिला देते हैं ।

 

हार जब सामने उनको नज़र आता ’आनन’

और के सर पे वो इलज़ाम लगा देते हैं ।

 

 


-आनन्द.पाठक-



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